Thursday, November 10, 2016

Divorce and Waiting Period

🌙SAHIH DEEN صحيح دين🌙

तलाक़ और इद्दत
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🗂इद्दत के दौरान शोहर की ज़िम्मेदारी - 04🗂

➡ 4. हामिला औरत की इद्दत बच्चे के जन्म तक होती है इसलिए बच्चे को दूध पिलाना उसकी जिम्मेदारी नहीं होती. इसलिए अगर शोहर चाहे की उसकी तलाक़ शुदा बीवी उसके बच्चे को दूध पिलाये तो उसे उसको खर्च देना पड़ेगा जो आदमी और औरत दोनों मिल कर तय करे. अगर औरत की मांगी हुई रकम आदमी न दे सके या औरत किसी वजह से बच्चे को दूध न पिला सके जैसे वो दोबारा शादी करना चाहती है और उसका नया शोहर उसे ये करने की इज़ाज़त नहीं देगा तो औरत को इस मामले में ज़बरदस्ती नहीं कर सकते. इस मामले में आदमी को अपने बच्चे के लिए दूध पिलाने वाली का इंतज़ाम करना होगा.

➡ 5. भरण पोषण और रहने का खर्च आदमी के की कमाई पर निर्भर करता है. अगर वो अमीर है तो उसे इस तरीके से खर्च देना चाहिए जैसे एक अमीर आदमी देता है और अगर वो गरीब है तो उसे गरीबो की तरह खर्च देना चाहिए. दुसरे शब्दो में, उसे अपनी बीवी का भरण पोषण उसी तरीके से करना चाहिए जैसे तलाक़ से पहले था.

इसलिए उसे उदार बनने की हो सके उतनी कोशिश करनी चाहिए और अपनी बीवी के खर्चे नहीं काटने चाहिए जिसके लिए 'उचित' शब्द का प्रयोग किया गया है. यही हुक्म बेवाओं पे भी है उसके खर्चे उसके शोहर की दौलत से निकले जाए और अगर कुछ दौलत नहीं बची तो ये ज़िम्मेदारी उसकी औवलाद पर या उसके घरवालो पर आती है.

ये परवाह किये बिना की औरत तलाक़शुदा है या बेवा, इस्लामी कानून उसे अकेला मजबूर छोड़ देने की इज़ाज़त नहीं देता. जो निकाह आदमी को औरत की ज़िन्दगी, सलामती और रखरखाव की ज़िम्मेदारी देता है वो ये भी आग्रह रखता है की इद्दत ख़त्म होने तक वो ज़िम्मेदारी रहे भले उसके घरवाले या कोई हो उसकी ज़िम्मेदारी लेने के लिए तैयार हो. तलाक़शुदा औरते को किसी भी वजह से जिसे क़ुरान और हदीस ने सख्त हराम फरमाया हो, अपना घर नहीं छोड़ना चाहिए. उसे कहा गया है की वह अपने शोहर से उसके घर के काम को पूरा करने के लिए कहे क्योंकि ये उसकी ज़िम्मेदारी है और अगर ये वो नहीं करता तोह इसपे कब्र तक का गुनहगार है. बेव को जैश है की वो अति ज़रुरत पर घर चोधे क्योंकि उसके शोहर का इन्तेक़ाल हो गया है और उसे अब उसका खुद ध्यान रखना है. अगर उसकी मदद करने के लिए कोई नहीं है तो वो एक हाकिम (डॉक्टर) को भी मिल सकती है और जाकर अपने लिए खाना भी ला सकती है क्योंकि ये ज़रुरत है.

मगर, उसे बिना ज़रुरत के खरीदी करने, टहलने जाने की, खुली हवा लेने की, समारोहों में भाग लेने की, दोस्तों से मिलने की इज़ाज़त नहीं.

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