🌙SAHIH DEEN صحيح دين🌙
तलाक़ और इद्दत
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🗂इद्दत के दौरान शोहर की ज़िम्मेदारी - 03🗂
इस आयत में हुक्म दिया गया है वो ये है:
➡ 1. तलाक़ के बाद औरत को उस घर से नहीं निकलना चाहिए मगर शोहर को उसके हिसाब से उसके रहने का इंतज़ाम करना चाहिए. अगर दी गयी तलाक़ सुलह करने वल्कि है (एक या दो तलाक़) तो फिर औरत को वही कमरे में रहने देना चाहिए जिससे शोहर और बीवी के बिच पर्दा न रहे. अगर तलाक़ सुलह वाली नहीं है (तीन तलाक़) तो फिर शोहर को बीवी के रहने का इंतज़ाम इस प्रकार करना चाहिए के उनके बिच पर्दा हो.
➡ 2. आदमी को ये इज़ाज़त नहीं है की वो तलाक़ के बाद अपनी बीवी के लिए मुश्किली पैदा करे और उसे मजबूर होकर घर छोड़ना पड़े. ख़ास तौर पर, फरमाया गया है की उन्हें 'तकलीफ' न दी जाए क्योंकि ये जले पे नमक छिडकने के जैसा है जिससे उसे तलाक़ के दुःख के साथ और दुःख होगा.
➡ 3. हामिला औरत की रहने और उसकी ज़रुरत की ज़िम्मेदारी उसके शोहर के ऊपर है जबतक वह बच्चे को जन्म न दे दे. हामिला औरत को अलग तौर से उल्लेख किया गया है क्योंकि वे उनकी मजबूरिया की वजह से वे हामिला न हो वेसी औरतो से काफी नाज़ुक होती है. भले ही आदमी को दोनों किस्म की औरतो का इंतज़ाम करने को कहा गया है जैसे सूरह बकरह की आयत 241 में फरमाया गया है,
"और तलाक़ शुदा औरतो के लिए भी, उनका इंतज़ाम एक उचित तरीक़ा है; ये नेकोकारों के ऊपर ज़िम्मेदारी है."
सब ईमानवालो को अल्लाह ता'अला से डरना चाहिए और उन्हें इद्दत ख़त्म होने तक अपनी तलाक़ शुदा बीवी के खर्चे उठाने को कहा गया है. 'उचित तरीक़ा' का मतलब है की जैसे वो तलाक़ के पहले रहती थी.
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