Monday, November 28, 2016

Divorce and Waiting Period

🌙SAHIH DEEN صحيح دين🌙

तलाक़ और इद्दत
Post 036

🔊कसम वाले अलफ़ाज़ - 03🔊

मसला:
अगर कोई इंसान कसम लेता है और फिर चार महीने के अंदर तोडना चाहे मगर वो अपनी बीवी से किसी भी वजह से सोहबत करने लायक नहीं है (जैसे वो या उसकी बीवी बीमार है, बीवी हैज़ से है, वो नामर्द है, वो बाद्य गया हो, उसकी बीवी इतनी दूर है की वो चार महीने पहले नहीं पहुच सकता, वो कैदी है, उसकी बीवी उसे सोहबत की इज़ाज़त नहीं देती, उसे पता नहीं उसकी बीवी कहा है वगैरा). ऐसे हालात में, उसे अपनी कसम वापस लेनी चाहिए औरत कहना चाहिए, 'मैं तुझसे सुलह कर लेता हु' या 'मैं कसम को रद्द करता हु' या 'मैं कसम वापस लेता हु' वगैरा और ये अलफ़ाज़ के कहने से कसम रद्द हो जायेगी.

ये बताता है की अगर चार महीने के भीतर बिवी से सोहबत न भी हो पाए तो एक तलाक़ का हुक्म नहीं लगता. फिर भी अपनी हिफाज़त के लिए, ये अलफ़ाज़ गवाहों के सामने बोलनी चाहिए. फिर भी, अगर कसम ओरण है तो उसकी शर्ते अभी भी लगती है और जब वो अपनी बीवी से सोहबत नहीं करता तो उसे अपनी कसम को तोड़ने का हदया देना पड़ेगा.

अगर कसम चार महीने की है और वो चार महीने के बाद सोहबत करता है तो कोई हदया नहीं है.  कसम की मुंह-ज़बानी की शर्त ये है की जो शर्ते उसे सुलाह करने और शोहबत करने से रोकती है वो हमेशा लागू रहेगी. अगर चार महीने के भीतर शर्ते बदली और वो अपनी बीवी से शोहबत करने के काबिल है तो उसे वो करना चाहिए ताकि सुलाह हो जाए.
(दुर्र ए मुख़्तार, जोहरा, बहार वगैरा)

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