🌙SAHIH DEEN صحيح دين🌙
तलाक़ और इद्दत
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💞बेवा औरत का दूसरा निकाह - 01💞
अपने शोहर के इंतेक़ाल के बाद अगर एक बेवा दूसरा निकाह कर ले तो ये गुनाह और उसका अपने चरित्र पे धब्बा गिना जाता था. अपने ससुराल वालो के लगातार दुःख और अपमान एक बेवा को इज़्ज़तदार और आरामदायक ज़िन्दगी नहीं गुजरने देती थी और धार्मिक और सामाजिक कानून उसे अपनी ज़िन्दगी अकेले ही गुजरने देती थी चाहे उसकी उम्र कितनी भी हो.
बेवा को अपने आप को ज़िंदा जला देना ये एक धार्मिक मसला था और अगर वो ज़िंदा रहती तो उसे सारी ज़िन्दगी अवमानना किया जाता और नफरत की जाती इसलिए वो बिना किसी हिचकिचात के उस दौर में अपने शोहर की जलती हुई लाश पर कूद जाती और उसी के साथ ज़िंदा जल जलना पसंद करती. इससे बिलकुल विरुद्ध, इस्लाम न सिर्फ बेवा को दूसरा निकाह करने की इज़ाज़त देता है मगर बेवा को दूसरे निकाह के लिए आग्रह करता है और इसे अकेले रहने से बहुत बेहतर होने का एलान करता है.
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