Tuesday, November 15, 2016

Divorce and Waiting Period

🌙SAHIH DEEN صحيح دين🌙

तलाक़ और इद्दत
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🚯जहालत के दौर में इद्दत - 01🚯

हज़रत उम्मे सलमा फरमाती है के एक औरत रसूलअल्लाह के पास आयी और राज़ किया, "मेरी बेटी के शोहर का इन्तेक़ाल हो गया है और उसे आँखों में दर्द है. क्या हम उसकी आँखों में सुरमा लगा सकते है?" आपने कहा, "नहीं." उसने एहि सवाल दो से तीन मर्तबा पूछा और हर बार रसूलअल्लाह ने मन किया. फिर रहमत उल लील आलमीन ने फरमाया, "(इस्लामी कानून में) इद्दत और शोक करना चार महीने और दस दिन है. (ये मुश्किल लगता है) मगर जहालत के वक़्त अगर औरत का शोहर का इन्तेक़ाल हो जाए तो औरत की इद्दत पूरा साल होती और जब साल ख़त्म हो जाए तो उसपे ऊंट का गोबर दाल कर बताया जाता था की उसकी ददत ख़त्म हुई."
(बुखारी और मुस्लिम)

इस्लाम आने से पहले, जाहिलियत के दौर में अलग अलग जगह पर अलग अलग कौम के लोगो का रिवाज था और औरत को उसके शोहर के इन्तेक़ाल के बाद जबरदस्ती बात मनवाई जाती थी.
हिंदुस्तान में, बेवा औरत को हिन्दू कौम के लोग अपने शोहर की लाश के साथ जिन्दा जल देते थे और उसे 'सती' कहा जाता था.
अरब में, जब शोहर का इन्तेक़ाल हो जाता था, तोह उसके बाद का साल उसकी बेवा औरत के लिए बहुत मुसीबत वाला हुआ करता था.
(इसकी जानकारी सुनन अबु दावूद में है और ऐसी ही एक हदीस का ज़िक्र बुखारी शरीफ, हदीस 5337 में भी मिलेगी.)

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