🌙SAHIH DEEN صحيح دين🌙
तलाक़ और इद्दत
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❌कसमे खाना❌
अल्लाह त'आला अपनी मुक़द्दस किताब क़ुरान ए मजीद में फरमाता है:
لِّلَّذِينَ يُؤْلُونَ مِن نِّسَآئِهِمْ تَرَبُّصُ أَرْبَعَةِ أَشْهُرٍ فَإِنْ فَآؤُوا فَإِنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
“जो लोग अपनी स्त्रियों से अलग रहने की क़सम खा बैठें, उनके लिए चार महीने की प्रतिक्षा है। फिर यदि वे पलट आएँ, तो अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है.”
(अल-बक़रा - 226)
ऊपर की आयत की मुताल्लिक़, मफ़स्सिरे ए शाहीर हज़रत अल्लामा सईद नईमुद्दीन मुरादाबादी लिखते है:
'जहालत के दिनों में, मर्दो की ये आदत थी की वो अपनी औरते से दहेज़ में सामान मांगते थे. अगर वे शोहर की मांगी हुई चीज़ देने में असफल रहती है तो शोहर कसम खाता है की वो अपनी औरते के पास एक, दो या तीन दिन या उससे ज्यादा दिनों तक नहीं जाएंगे (शारीरिक सम्बन्ध). उसकी औरत फिर फ़स जाती क्योंकि न तो वो बेवा है न किसी और से निकाह कर सकती है नाही अपने शोहर के साथ आराम से रह सकती है जैसे वह रहती थी.
इस्लाम ने ये क्रूर प्रथा को बंध करवाई और ऐसी कसमो के लिए ज्यादा से ज्यादा चार महीना का वक़्त दिया. यह बताया जाता है की अगर किसी ने ऐसी कसम खाई है तोह उसे सोचने के लिए चार महीने का वक़्त दिया जाता है की उसके लिए उसकी बीवी को क़ुबूल करना बेहतर है या उसे तलाक़ देना. अगर वो उसे रखने का इरादा करता है और सुलह कर लेता है तोह उसका निकाह जाइज़ रहेगा मगर उसे अपनी टूटी हुई कसम का कफ़्फ़ारा अदा करना पड़ेगा. अगर वो इस वक़्त में सुलह नहीं करता तो उसका निकाह टूट जाएगा और एक न रुजू करने वाली तलाक़ वाजिब हो जाती है.
(खज़ाइन उल इरफ़ान)
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