Thursday, October 20, 2016

मुहर्रम - मुहर्रम और इमाम हुसैन की विशेषता

🌙SAHIH DEEN صحيح دين🌙

❄मुहर्रम और इमाम हुसैन की विशेषता❄
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🌹रसूलअल्लाह (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) के नवासे की शहादत - 03🌹

बद्र बिन सुहैल ये सब देख रहा था. वो दुसरे योद्धा के सामने कसम खाने लगा और कहने लगा की वे डरपोक है और उन्हें लड़ना नहीं आता. उसने अपने एक बेटे को लड़ने भेज. इमाम हुसैन ने कहा, 'ये बेहतर रहता अगर तुम्हारे घमंडी पिता लड़ने आते ताकि वह अपने बेटे को मरते न देखे.' कुछ ही समय में इमाम उसे जहन्नुम में भेज दिया. बद्र से अपने बेटे की ये हलकट सहन नहीं हुई और वो इमाम हुसैन को अपने भले से वार करने आगे पंहुचा. इमाम ने उसके हमले का बचाव किया. बद्र ने फिर अपनी तलवार निकाली और हमला किया. इमाम ने फिर बचाव किया और फिर इमाम ने ऐसा ज़ोर का झटका दिया की उसका सर एक बड़े गेंद की तरह चक्कर लगता फेका गया.

एक के बाद एक सब आये और अपना नसीब आज़माने लगे मगर ज़ुल्फ़िकार की ताक़त से कोई बढ़ नहीं पाया. लाशो की देर बनती रही. दुश्मनो को खेमे में हलचल मच गयी की अगर शेर इ खुद का साहबज़ादा ऐसे ही लगा रहा तो हम में से कोई नहीं बचेगा. डरपोकों ने फिर चारो बाजू इसे हमला करने का सोचा. इमाम हुसैन को फिर चारो और से उनके खून की प्यासी ऐसी नंगी तलवारो से घेरा गया. मगर जब ज़ुल्फ़िकार काम करने लगी तो दुश्मनो के सर ज़मीन पर पत्तो की तरह गिरने लगे.

जब अम्र बिन साद ने देखा की उसका तरीक़ा बुरी तरह से नाकामयाब हुआ, तो उसने चारो और से तीर बरसाने का हुक्म दिया. इमाम को हर तरफ से तीरो से हमला किये जाने लगा. अब एक के सामने हज़ार का माहौल बन गया था. उनका घोडा इतना जख्मी हो गया था की हिलने के काबिल नहीं बचा था. इमाम हुसैन का जिस्म ज़ख्म से इतना भर गया की उनके जिस्म के हर हिस्से तक खून पहुच गया. अचानक एक जहर से लकगे हुआ तीर आकर उनकी मुबारक पेशानी पर लगा, वही मुबारक पेशानी जो रसूलअल्लाह (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) हमेशा चूम करते थे. इमाम हुसैन (रदी'अल्लाहो त'आला अन्हु) अब बेहोश होकर ज़मीन पर गिर गए. मगर हमले बांध नहीं हुए. वो दुष्ट आत्मा अभी भी भाले से उनपे वार करते रहे. बहत्तर जख्म खाने के बाद भी इमाम हुसैन सजदे में गए. सजदे में जाने के बाद उनकी रूह परवाज़ कर गयी और अपने रब की मर्ज़ी के पास पहुँच गयी.
(इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजिऊन)

शहादत का सबसे ऊँचा दर्जा मिलते वक़्त इमाम हुसैन (रदी'अल्लाहो त'आला अन्हु) की उम्र 56 साल 5 महीने और 5 दिन थी. वो हिज्र 61 की मुहर्रम की 10वि तारीख थी. नाध्र बिन हरसा इमाम हुसैन का सर उनके जिस्म से अलग करने के लिए आगे आया मगर इमाम का जिस्म देख कर घबरा गया. उसके बाद, खोल बिन यज़ीद, सुनन बिन अनस और शिम्मर ऐसे ज़ालिम कुत्ते थे जिन्हों ने ये दुनिया का सबसे घिनोना काम किया. यज़ीद और उसके माननेवाले बस यहाँ नहीं रुके. उन्हीने इमाम हुसैन (रदी'अल्लाहो त'आला अन्हु) के जिस्म को लूट लिया की उनके जिस्म से कपडे और जूते भी उतार लिए. फिर वो खेमे की तरफ बढे जहा रसूलअल्लाह (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) परिवार की औरते पनाह ले रही थी और उन्हें ज़लील करके लूट लिए. उसके बाद अम्र बिन साद ने ऐलान किया, 'इमाम के जिस्म पर कौन घोड़े दौड़ा कर उनके जिस्म को विकृत करना चाहता है?' दस मनहूस कुत्ते आगे आये और अपने घोड़े पे सवार होकर आपके मुबारक जिस्म पर घोड़े दौड़ाये.'
[तारिख ए कर्बला]

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